Friday 24 April 2015

बहारे कभी मेरे आॅगन मे आए गी इस तरह--सोचा ना था----वो फिर लौट आए गे मेरी

जिनदगी मे--कही खवाब ना था-----कलियो मे,फूलो मे,हर शाख पे,हर डाल पे--जैसे नूर

आ रहा है----आसमाॅ से जैसे परियो का हजूम आ रहा है---कहने की बात नही है कि तेरे

आने के सनदेशे से ही---यह मन मुहबबत के दिए जला रहा है----------

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...