बदलते रहे आशियाने कई-पर कहने को अपना कोई भी नही---समनदर की रेत की तरह
-खवाहिशो का दौर बदलता ही रहा---दिलो दिमाग मे बसा वो हमसफऱ कही भी नही--
वजूद मेरा जिनदगी बन ना सका--दौलत शौहरत की दीवारो मे कैद,पर इनसाॅ तो कही
भी नही--अशक बहते रहे बहते रहे--पर मनिजले आशिक तो कही भी नही-कही भी नही
-खवाहिशो का दौर बदलता ही रहा---दिलो दिमाग मे बसा वो हमसफऱ कही भी नही--
वजूद मेरा जिनदगी बन ना सका--दौलत शौहरत की दीवारो मे कैद,पर इनसाॅ तो कही
भी नही--अशक बहते रहे बहते रहे--पर मनिजले आशिक तो कही भी नही-कही भी नही