Saturday 14 November 2015

तेरी मुहबबत मे तो कोई बॅदिश ना थी,पर हम ही बॅध नही पाए---तूने तो दी खुली साॅसे

मुझ को,पर हम ही वो साॅसे ले नही पाए-याद करते है आज भी तेरी तमाम मेहरबानिया

,वो मुहबबत-वो दीवानगी--यह साॅसे तो आज भी कायम है,पर भूले तो कैसे भूले कि इन

साॅसो मे महक रही है आज भी-तेरे साथ गुजारी वो बेपरवाह तनहाईया-----

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...