Saturday 21 November 2015

तेरे इशक का दरिया बहता है आज भी,मेरी रूह के वजूद मे---बेशक दुनिया यह समझे

कि मशगूल हू मै,शाही जिनदगी के ऱसूख मे---दौलत से खरीदे  ना जाने कितने महल,

लुटाया खजाना ना जाने कया सोच कर----पर आज भी हर लमहा तेरी मुहबबत की

गुरबत मे,बहुत तनहाॅ और मायूस हू------

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...