घुघरू की आवाज पे,ढोलक की थाप पे-जो थिरके कदम--फिर रूक ही नही पाए-------
दरिनदे साज ने जो लूटा,इनसाॅ फिर कभी बन नही पाए---रूह को मुकममल करने की
कोशिश मे,गहरे सैलाब मे डूबते उतरते चले गए---दरबारे-पाक मे जो सर झुकाया--
मुुशिकलो से आजाद होते चले गए--होते चले गए----
दरिनदे साज ने जो लूटा,इनसाॅ फिर कभी बन नही पाए---रूह को मुकममल करने की
कोशिश मे,गहरे सैलाब मे डूबते उतरते चले गए---दरबारे-पाक मे जो सर झुकाया--
मुुशिकलो से आजाद होते चले गए--होते चले गए----