Tuesday 20 October 2015

यह मुहबबत है या फिर छलकता हुआ पैमाना है---कुछ खवाब है अधूरे से या फिर

महकता हुआ नजऱाना है--दिल का यह दरद,जो उठता है यू हौले हौले--कोई साजिश है

या फिर जिनदगी का कोई अफसाना है---कही बस ना जाए तेरी मुहबबत के आशियाने

मे--कि आ रही है सदा तेरे दिली शहखाने से-----

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...