Tuesday, 25 November 2014

आप दासताॅ सुना रहे थे हमे अपनी,और हम भरी निगाहो से आप को निहारते रहे..

अशक निकले जब छोड कर दामन इन आॅखो का,तो आप की दुआओ ने उनहे थाम

लिया..कसूर आप की दासताॅ का था या फिर हमारे अशको का,नही जानते..बस जानते

है इतना कि आप मुहबबत का वो मकाम है,जहाॅ आने के लिए सजदे किए है हम ने

सदियो से...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...