Wednesday 30 January 2019

इंतिहा जनून की किसे कहते है,मालूम नहीं..इंतिहा इबादत की कहाँ तक होती है,यह भी याद नहीं..

रेशम के धागो से भी जो रिश्ता बंधा रहे...चोट जो तुझ को लगे,आंसू मेरी आँखों से निकल आये...

तू जो कहे दिन को रात,मेरी नज़र उसी को सलाम करे...हसरते छोटी छोटी,मगर सकून जिस मे

हम दोनों को मिले...ख़्वाब जो तू देखे,रज़ा मेरी उसी मे शिरकत ही करे...शायद जनून प्यार का इसी

को कहते है... 

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...