इंतिहा जनून की किसे कहते है,मालूम नहीं..इंतिहा इबादत की कहाँ तक होती है,यह भी याद नहीं..
रेशम के धागो से भी जो रिश्ता बंधा रहे...चोट जो तुझ को लगे,आंसू मेरी आँखों से निकल आये...
तू जो कहे दिन को रात,मेरी नज़र उसी को सलाम करे...हसरते छोटी छोटी,मगर सकून जिस मे
हम दोनों को मिले...ख़्वाब जो तू देखे,रज़ा मेरी उसी मे शिरकत ही करे...शायद जनून प्यार का इसी
को कहते है...
रेशम के धागो से भी जो रिश्ता बंधा रहे...चोट जो तुझ को लगे,आंसू मेरी आँखों से निकल आये...
तू जो कहे दिन को रात,मेरी नज़र उसी को सलाम करे...हसरते छोटी छोटी,मगर सकून जिस मे
हम दोनों को मिले...ख़्वाब जो तू देखे,रज़ा मेरी उसी मे शिरकत ही करे...शायद जनून प्यार का इसी
को कहते है...