रेशम के धागो की तरह नाज़ुक,शबनमी ओस की जैसे निखरी..रंग जैसे कोई खिला गुलाब,पखुड़ियो
को मात देते लबो से निकलते वो मीठे अल्फाज़..तेरे हुस्न की परख ज़माना कर नहीं सकता..तू पाक
है इतनी कि इबादत मे कोई दिल इतना साफ़ हो नहीं सकता...छू लेना तो बहुत दूर की बात है,ख़्वाब
मे तुझे कोई देखे,इतना नसीब ले कर कोई पैदा हो ही नहीं सकता...
को मात देते लबो से निकलते वो मीठे अल्फाज़..तेरे हुस्न की परख ज़माना कर नहीं सकता..तू पाक
है इतनी कि इबादत मे कोई दिल इतना साफ़ हो नहीं सकता...छू लेना तो बहुत दूर की बात है,ख़्वाब
मे तुझे कोई देखे,इतना नसीब ले कर कोई पैदा हो ही नहीं सकता...