Wednesday 2 January 2019

रेशम के धागो की तरह नाज़ुक,शबनमी ओस की जैसे निखरी..रंग जैसे कोई खिला गुलाब,पखुड़ियो

को मात देते लबो से निकलते वो मीठे अल्फाज़..तेरे हुस्न की परख ज़माना कर नहीं सकता..तू पाक

है इतनी कि इबादत मे कोई दिल इतना साफ़ हो नहीं सकता...छू लेना तो बहुत दूर की बात है,ख़्वाब

मे तुझे कोई देखे,इतना नसीब ले कर कोई पैदा हो ही नहीं सकता...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...