Wednesday 15 March 2017

न लगा पहरा मेरी नज़रो पे,यही तो है जो तेरी मुहब्बत को सलाम करती है----तेरे कदम पड़ते है

जहाँ जहाँ,वही शिद्दत से सज़दा करती है---तू दूर रहे कितना भी मुझ से,या खफा भी हो जाए मुझ

से..पलकों के आशियाने मे छिप कर नज़रे चार कर लेती है---यह मुहब्बते-पाक है,जो तेज़ आंधियो

से भी ना रुक पाए गी..यह खुदा का नूर है,जो अपनी इबादत मे  तुझे भी याद करती है----

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...