पायल बजती रही-बजती रही--और घुुुुघॅरू टूटते गए----बदहवासी के आलम मे-साॅसे
घुटती रही---खामोशिया चुराने लगी अलफाजो के बोझ--जुबाॅ थरथराती रही-थरथराती
रही---मौत के खौफ से-जिनदगी बेजाऱ होती रही---किसी के इनतजाऱ मे यह साॅसे फिर
भी चलती रही---कब आए गा वो मसीहा-आॅसूओ के दामन मे वो तसवीर---बदलती रही
बदलती ही रही-----
घुटती रही---खामोशिया चुराने लगी अलफाजो के बोझ--जुबाॅ थरथराती रही-थरथराती
रही---मौत के खौफ से-जिनदगी बेजाऱ होती रही---किसी के इनतजाऱ मे यह साॅसे फिर
भी चलती रही---कब आए गा वो मसीहा-आॅसूओ के दामन मे वो तसवीर---बदलती रही
बदलती ही रही-----