Tuesday 15 December 2015

पायल बजती रही-बजती रही--और घुुुुघॅरू टूटते गए----बदहवासी के आलम मे-साॅसे

घुटती रही---खामोशिया चुराने लगी अलफाजो के बोझ--जुबाॅ थरथराती रही-थरथराती

रही---मौत के खौफ से-जिनदगी बेजाऱ होती रही---किसी के इनतजाऱ मे यह साॅसे फिर

भी चलती रही---कब आए गा वो मसीहा-आॅसूओ के दामन मे वो तसवीर---बदलती रही

बदलती ही रही-----

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...