Thursday 6 August 2015

खामोशिया कभी गुनगुनाती भी है,जऱा सुन के देखो--यह वादिया कभी कभी रूला भी

देती है,करीब जा कर तो देखो--हवाए कभी बहकती भी है,जिसम की थरथराहट को छू

कर तो देखो--रूह को रूह से मिलाने की कोशिश मे,जऱा पाक मुहबबत के मायने जान

कर के देखो---यह जिनदगी चुपके से फना हो जाए गी--

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...