खामोशिया कभी गुनगुनाती भी है,जऱा सुन के देखो--यह वादिया कभी कभी रूला भी
देती है,करीब जा कर तो देखो--हवाए कभी बहकती भी है,जिसम की थरथराहट को छू
कर तो देखो--रूह को रूह से मिलाने की कोशिश मे,जऱा पाक मुहबबत के मायने जान
कर के देखो---यह जिनदगी चुपके से फना हो जाए गी--
देती है,करीब जा कर तो देखो--हवाए कभी बहकती भी है,जिसम की थरथराहट को छू
कर तो देखो--रूह को रूह से मिलाने की कोशिश मे,जऱा पाक मुहबबत के मायने जान
कर के देखो---यह जिनदगी चुपके से फना हो जाए गी--