Sunday 23 August 2015

बह रहा जो दरद बरसो से,इन आॅखो से मेरे--कौन है वो मसीहा जो ले जाए गा मुझे उस

आसमाॅ से परे--इनितहा तो बस इनितहा होती है-कभी खुशी की तो कभी गम की दवा

होती है--परिनदो की भी इक दुनिया होती है,दरद से तडपते है जब तो रिहायश जमी पे

होती है--इनसाॅॅ जब तडप जाता है-उस की रिहायश आसमाॅ से परे होती है-----

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...