Tuesday 11 August 2015

चेहरेे का नूर देखा,तो उनहे हम से पयार हो गया--उलझनो को छोड पीछे,किसी गुफतगू

मे इकरार हो गया----सपनो के ताने-बाने बुने,इक खूबसूरत सा सॅसार बन गया--ढलती

रही---ढलती रही वो शाम,और मुकददऱो का मिलना शाहे गुलजाऱ हो गया----

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...