Thursday 27 August 2015

उन आॅखो मे ना जाने कितना दरद देखा,कि हम अपना दरद ही भूल गए---दरद मे

लिपटी उस की कहानी सुन कर,हम अपनी दरदे-दासताॅॅ ही भूल गए---खुद की चाहत तो

कभी ना पा सके हम,पर चाहत उस की लौटा कर जो सकून पाया हम ने--उस सकून मे

हम अपनी कहानी ही भूल गए------

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...