वकत जखम देता रहा और हम सहते रहे---दिन-ब-दिन यह जखम नासूर बनते रहे---
कहते है जखम भर ही जाते है--पर जो जखम नासूर बन गए वो कया भर पाए गे--जब
जब कुरेदते रहे इन जखमो को--लहूलुहान होते रहे---यादो की दौड मे आॅखे भिगाते ही
रहे--रूह ने कहा इनितहाॅ हो गई ऐ मेरे खुदा--हम ने दिल दे दिया उन तमाम यादो
के साथ खुदा की इबादत मे--और जिनदगी को रौशन करने नई राह पे चल दिए-------
कहते है जखम भर ही जाते है--पर जो जखम नासूर बन गए वो कया भर पाए गे--जब
जब कुरेदते रहे इन जखमो को--लहूलुहान होते रहे---यादो की दौड मे आॅखे भिगाते ही
रहे--रूह ने कहा इनितहाॅ हो गई ऐ मेरे खुदा--हम ने दिल दे दिया उन तमाम यादो
के साथ खुदा की इबादत मे--और जिनदगी को रौशन करने नई राह पे चल दिए-------