Wednesday 10 June 2015

वकत जखम देता रहा और हम सहते रहे---दिन-ब-दिन यह जखम नासूर बनते रहे---

कहते है जखम भर ही जाते है--पर जो जखम नासूर बन गए वो कया भर पाए गे--जब

जब कुरेदते रहे इन जखमो को--लहूलुहान होते रहे---यादो की दौड मे आॅखे भिगाते ही

रहे--रूह ने कहा इनितहाॅ हो गई ऐ मेरे खुदा--हम ने दिल दे दिया उन तमाम यादो

के साथ खुदा की इबादत मे--और जिनदगी को रौशन करने नई राह पे चल दिए-------

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...