Tuesday 5 May 2015

रासते मे बिछी धूल जैसे नही है हम--इमितहान मेरी मुहबबत के कितने भी लो--तैयार

है हम---जिनदगी केे हर थपेडे को भी सहने के लिए तैयार है हम---धन दौलत की

चकाचौॅध को भी तेरे लिए छोड दे गे हम--तेरी बाहो मे दम तोडे-यह खवााहिश भी रखते

है हम--पर मेरा वजूद तू बिलकुल ही मिटा दे--यह तो कभी भी ना होने दे गे हम------

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...