टूटन भरी इस जिस्म मे इतनी...ख़ामोशी लिपटी इस जुबाँ मे इतनी...हर जर्रा जैसे कह रहा मेरे
दिल की दास्ताँ...जिन फूलो से ली थी कभी खुशबू उधार,जिन हवाओ मे थिरके ना जाने कितनी
बार....उस आसमाँ से हाथ उठा कर मिन्नतें की थी ना जाने कितनी ही बार...अपने दामन मे उन
खुशियों के लिए,रोये भी थे कभी जार जार...आज टूटन भरी है जिस्म मे इतनी,कि हर जर्रा कह रहा
जैसे दास्ताँ मेरे ही दिल की....
दिल की दास्ताँ...जिन फूलो से ली थी कभी खुशबू उधार,जिन हवाओ मे थिरके ना जाने कितनी
बार....उस आसमाँ से हाथ उठा कर मिन्नतें की थी ना जाने कितनी ही बार...अपने दामन मे उन
खुशियों के लिए,रोये भी थे कभी जार जार...आज टूटन भरी है जिस्म मे इतनी,कि हर जर्रा कह रहा
जैसे दास्ताँ मेरे ही दिल की....