वो तो कांच के टुकड़े थे,जिन्हे हम हीरा समझते रहे...सारी उम्र तराशा मगर, चमक ना दे कर वो बस
दिल मे ही चुभते रहे...जोड़ने की कोशिश मे,हाथो मे हमेशा दर्द देते रहे....सोचा बहुत बार,चाहा भी
बहुत बार कि कण कण इस का समेटे और एक सार कर जाए..मगर कांच तो कांच रहा,हलकी से
ठसक से टूट गया...धार तीखी फिर ना चुभ जाए,इस खौफ से कांच को कांच समझ छोड़ दिया ....
दिल मे ही चुभते रहे...जोड़ने की कोशिश मे,हाथो मे हमेशा दर्द देते रहे....सोचा बहुत बार,चाहा भी
बहुत बार कि कण कण इस का समेटे और एक सार कर जाए..मगर कांच तो कांच रहा,हलकी से
ठसक से टूट गया...धार तीखी फिर ना चुभ जाए,इस खौफ से कांच को कांच समझ छोड़ दिया ....