Monday 10 September 2018

बहकते बहकते इतना बहके कि धरा के किनारो को भी पार कर आए...ज़माना देता रहा दुहाई पर

हम तो इस ज़माने को ही दगा दे आए...कब तल्क़ परवाह करते ज़माने के बेवजह इल्ज़ामो की...

कहाँ उठाए हमारे नाज़ इसी  ज़माने के  इंसानो ने....बहकना तो अब लाज़मी ही था कि मौत के

खौफ से परे हम इसी ज़िंदगी से ही दूर,बहुत दूर निकल आए ......

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...