बहकते बहकते इतना बहके कि धरा के किनारो को भी पार कर आए...ज़माना देता रहा दुहाई पर
हम तो इस ज़माने को ही दगा दे आए...कब तल्क़ परवाह करते ज़माने के बेवजह इल्ज़ामो की...
कहाँ उठाए हमारे नाज़ इसी ज़माने के इंसानो ने....बहकना तो अब लाज़मी ही था कि मौत के
खौफ से परे हम इसी ज़िंदगी से ही दूर,बहुत दूर निकल आए ......
हम तो इस ज़माने को ही दगा दे आए...कब तल्क़ परवाह करते ज़माने के बेवजह इल्ज़ामो की...
कहाँ उठाए हमारे नाज़ इसी ज़माने के इंसानो ने....बहकना तो अब लाज़मी ही था कि मौत के
खौफ से परे हम इसी ज़िंदगी से ही दूर,बहुत दूर निकल आए ......