Friday, 28 September 2018

नरम गर्म सर्द मौसम आने को है..चल आ घर की दीवारों मे सिमट जाए...हल्का हल्का नशा गुनगुनी

धूप का बस आने को है,आ खुले आंगन मे बिखर जाए...कोई प्यारी सी नज़्म हम आप पे लिख बैठे,

कभी शायराना अंदाज़ से आप हमे देख बैठे...यू तो हज़ारो नगमे सुनाए है इन्ही हवाओ ने...कभी कभी

ख़ामोशी ने भी सुना है तेरे मेरे चर्चो को इत्मीनान से...इंतज़ार फिर से है इस सर्द मौसम का,चल आ

घर की ख़ामोशी पे एक बार फिर तेरा मेरा नाम लिख दे... 

Saturday, 22 September 2018

वो तो कांच के टुकड़े थे,जिन्हे हम हीरा समझते रहे...सारी उम्र तराशा मगर, चमक ना दे  कर वो बस

दिल मे ही चुभते रहे...जोड़ने की कोशिश मे,हाथो मे हमेशा दर्द देते रहे....सोचा बहुत बार,चाहा भी

बहुत बार कि कण कण इस का समेटे और एक सार कर जाए..मगर कांच तो कांच रहा,हलकी से

ठसक से टूट गया...धार तीखी फिर ना चुभ जाए,इस खौफ से कांच को कांच समझ छोड़ दिया ....

Monday, 10 September 2018

मुलाकात ना कर मगर इकरार तो कर...मिलने का वादा ना सही मगर हसरतो को आबाद तो कर...

बेशक हंसी अपने लबों पे ना ला,मगर इक मीठी मुस्कान का आगाज़ तो कर...झरनो की तरह वो

आवाज़ ना कर,कभी बारिश की बूंदो की तरह बरसात तो कर...बेशक दिल के पन्ने पे मेरा नाम ना

लिख,कभी भूले से मुझे मेरे नाम का कोई इंतज़ार तो कर...
टूटन भरी इस जिस्म मे इतनी...ख़ामोशी लिपटी इस जुबाँ मे इतनी...हर जर्रा जैसे कह रहा मेरे

दिल की दास्ताँ...जिन फूलो से ली थी कभी खुशबू उधार,जिन हवाओ मे थिरके ना जाने कितनी

बार....उस आसमाँ से हाथ उठा कर मिन्नतें की थी ना जाने कितनी ही बार...अपने दामन मे उन

खुशियों के लिए,रोये भी थे कभी जार जार...आज टूटन भरी है जिस्म मे इतनी,कि हर जर्रा कह रहा

जैसे दास्ताँ मेरे ही दिल की....
बहकते बहकते इतना बहके कि धरा के किनारो को भी पार कर आए...ज़माना देता रहा दुहाई पर

हम तो इस ज़माने को ही दगा दे आए...कब तल्क़ परवाह करते ज़माने के बेवजह इल्ज़ामो की...

कहाँ उठाए हमारे नाज़ इसी  ज़माने के  इंसानो ने....बहकना तो अब लाज़मी ही था कि मौत के

खौफ से परे हम इसी ज़िंदगी से ही दूर,बहुत दूर निकल आए ......

Friday, 7 September 2018

मुहब्बत को जुबाँ देने के लिए,ख़त का सहारा लिया हम ने...इश्क को बयां करने के लिए,आँखों का

सहारा चुना हम ने...बात समझे वो दिल की मेरी,चूडियो को खनखना जरुरी जाना हम ने...चूक ना

हो जाए कभी भूले से,उन की हर बात को सर आँखों पे बिठाना अपना हक़ माना हम ने...''तुम हो जान

मेरी,मेरी मुहब्बत पाने के लिए कोई जरुरत ही नहीं किसी सहारे की''....उन की इस बात को सुनने के

लिए,अब खामोश ही रहना जरुरी समझा हम ने...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...