कलम हाथ मे उठाते है जब जब,हज़ारो लफ्ज़ इन पन्नो पे उतर जाते है----कभी दर्द की इंतिहा के साथ
तो कभी आंसुओ से इन्हे भिगो जाते है----यादो को जब भी उतारा है लफ्ज़ो की अदायगी के साथ,कभी
मुस्कुराये है तो कभी शर्म से लाल हो जाते है----वो मखमली दुपट्टे मे हमारा हसीं चेहरा और सफ़ेद
कुर्ते मे तेरी गज़ब सी हसी का पहरा----उस लाज़वाब कहानी पे कितने भी लफ्ज़ो को उतारे,कम लगता
है----इश्क़ और हुसन की दास्ता पे आज भी मर जाए तो कम लगता है -----
तो कभी आंसुओ से इन्हे भिगो जाते है----यादो को जब भी उतारा है लफ्ज़ो की अदायगी के साथ,कभी
मुस्कुराये है तो कभी शर्म से लाल हो जाते है----वो मखमली दुपट्टे मे हमारा हसीं चेहरा और सफ़ेद
कुर्ते मे तेरी गज़ब सी हसी का पहरा----उस लाज़वाब कहानी पे कितने भी लफ्ज़ो को उतारे,कम लगता
है----इश्क़ और हुसन की दास्ता पे आज भी मर जाए तो कम लगता है -----