चंद लफ्ज़ो का वास्ता दे कर,शिद्दत से उन को बुलाया करते है...बात कुछ भी नहीं मगर फिर भी
बुलाया करते है..एक सकून पाने के लिए उन की सूरत को निहारा करते है...इबादत तो उन की करते
है लेकिन इबादत की वजह कभी ना बताया करते है...वो समझते है हम को खुदा,मगर हम कनीज़
बन कर भी उन के नखरे उठाया करते है..फर्क इबादत का है इतना..वो समझते है मुझ को खुदा ..
पर हम ऐसी अदा पे दुआओ के ख़ज़ाने उन्ही पे लुटाया करते है..
बुलाया करते है..एक सकून पाने के लिए उन की सूरत को निहारा करते है...इबादत तो उन की करते
है लेकिन इबादत की वजह कभी ना बताया करते है...वो समझते है हम को खुदा,मगर हम कनीज़
बन कर भी उन के नखरे उठाया करते है..फर्क इबादत का है इतना..वो समझते है मुझ को खुदा ..
पर हम ऐसी अदा पे दुआओ के ख़ज़ाने उन्ही पे लुटाया करते है..