सितारों से भरी है यह रात लेकिन,हम चाँद को ही ढूंढा करते है...सुबह सवेरे की नरम घास मे तेरे
कदमो के निशाँ ही ढूंढा करते है...लोग दीवाना कह कर हम को पुकारा करते है...जज्बात कोई बेशक
ना समझे,तेरी ही धुन मे अकेले ही गुनगुनाया करते है..यारा यह मुहब्बत है,जिस के अल्फाजो को
ज़माना नफरत से जलाया करता है...आ लौट चले किसी अनजान दुनिया मे,जहा रेत पे भी यह
मुहब्बत घर बसाया करती है...
कदमो के निशाँ ही ढूंढा करते है...लोग दीवाना कह कर हम को पुकारा करते है...जज्बात कोई बेशक
ना समझे,तेरी ही धुन मे अकेले ही गुनगुनाया करते है..यारा यह मुहब्बत है,जिस के अल्फाजो को
ज़माना नफरत से जलाया करता है...आ लौट चले किसी अनजान दुनिया मे,जहा रेत पे भी यह
मुहब्बत घर बसाया करती है...