Wednesday 3 October 2018

दुनिया की भीड़ मे रहे तो भी दूर रहे....महफ़िलो मे जो गए कभी तो अफसानों से भी दूर रहे...जवाब

तलब करता रहा यह ज़माना, मगर ख़ामोशी का लबादा ओढे  हुए हर सवाल से दूर रहे...बेकार का वोह

तमाशा और झूठी हंसी मे लिपटा हर इंसान एक अजीब सवाल लगा...घुटन के उस माहौल मे हर कोई

बेगाना ही लगा...यह दुनिया रास नहीं आई हम को,इस भीड़ से परे बहुत दूर,बहुत दूर चले गए...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...