Tuesday, 22 July 2014

एक कोशिश कर रहै है,जिनदगी को फिर सेे जीने की..

जो दरद मिले उन को भूूल कर,खुद मे खुद को समाने की..

यकीन खुद पे है इतना,कि निकल जाए गेेे उन झमेलो से...

पर यह नही भूल पाए गेेे,कि गुनाहगार बना दिया खुद अपनो ने..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...